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जैविक खेती पर इस संस्थान में मिलता है मुफ्त प्रशिक्षण, घर बैठे शुरू हो जाती है कमाई

जैविक खेती पर इस संस्थान में मिलता है मुफ्त प्रशिक्षण, घर बैठे शुरू हो जाती है कमाई

जालंधर में नूरमहल के दिव्य ज्योति जागृति संस्थान (Divya Jyoti Jagrati Sansthan)ने जैविक खेती की प्रेरणा एवं प्रशिक्षण के पुनीत कार्य में मिसाल कायम की है। बीते 15 सालों से पर्यावरण संरक्षण की दिशा में रत इस संस्थान ने कैसे अपने मिशन को दिशा दी है, कैसे यहां किसानों को प्रशिक्षित किया जाता है, कैसे सेवादार इसमें हाथ बंटाते हैं जानिये।

सफलता की कहानी -

जैविक खेती के मामले में आदर्श नूरमहल के दिव्य ज्योति जागृति संस्थान में जनजागृति एवं प्रशिक्षण की शुरुआत कुल 50 एकड़ की भूमि से हुई थी। अब 300 एकड़ जमीन पर जैविक खेती की जा रही है। अनाज की बंपर पैदावार के लिए आदर्श रही पंजाब की मिट्टी, खेती में व्यापक एवं अनियंत्रित तरीके से हो रहे रासायनिक खाद और कीटनाशकों के इस्तेमाल से लगातार उपजाऊ क्षमता खो रही है। जालंधर के नूरमहल स्थित दिव्य ज्योति जागृति संस्थान ने इस समस्या के समाधान की दिशा में आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया है।

गौसेवा एवं प्रेरणा -

संस्थान में गोसेवा के साथ-साथ पिछले 15 सालों से किसानों को जैविक खेती के लाभ बताकर प्रेरित करने के साथ ही प्रशिक्षित किया जा रहा है। संस्थान की सफलता का प्रमाण यही है कि साल 2007 में 50 एकड़ भूमि पर शुरू की गई जैविक कृषि आधारित खेती का विस्तार अब 300 एकड़ से भी ज्यादा ऊर्जावान जमीन के रूप में हो गया है। यहां की जा रही जैविक खेती को पर्यावरण संवर्धन की दिशा में मिसाल माना जाता है। ये भी पढ़ें: देश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा, 30 फीसदी जमीन पर नेचुरल फार्मिंग की व्यवस्था

सेवादार करते हैं खेती -

संस्थान के सेवादार ही यहां खेती-किसानी का काम संभालते हैं। किसान एवं पर्यावरण के प्रति लगाव रखने वालों को संस्थान में विशेष कैंप की मदद से प्रशिक्षित किया जाता है। गौरतलब है कि गौसेवा, प्रशिक्षण के रूप में जनसेवा एवं जैविक कृषि के प्रसार के लिए प्रेरित कर संस्थान प्रकृति संवर्धन एवं स्वस्थ समाज के निर्माण में अतुलनीय योगदान प्रदान कर रहा है।

रासायनिक खाद के नुकसान -

संस्थान के सेवादार शिविरों में इस बारे में जागरूक करते हैं कि रासायनिक खाद व कीटनाशक से लोग किस तरह असाध्य बीमारियों की चपेट में आते हैं। इससे होने वाली शुगर असंतुलन, ब्लड प्रेशर, जोड़ दर्द व कैंसर जैसी बीमारियों के बारे में लोगों को शिविर में सावधान किया जाता है। ये भी पढ़ें: जैविक खेती में किसानों का ज्यादा रुझान : गोबर की भी होगी बुकिंग यहां लोगों की इस जिज्ञासा का भी समाधान किया जाता है कि जैविक खेती के कितने सारे फायदे हैं। जैविक कृषि विधि से संस्थान गेहूं, धान, दाल, तेल बीज, हल्दी, शिमला मिर्च, लाल मिर्च, कद्दू, अरबी की खेती कर रहा है। साथ ही यहां फल एवं औषधीय उपयोग के पौधे भी तैयार किए जाते हैं।

गोमूत्र निर्मित देसी कीटनाशक के फायदे -

संस्थान के सेवादार फसल को खरपतवार और अन्य नुकसान पहुंचाने वाले कीड़ों से बचाने के लिए खास तौर से तैयार देसी कीटनाशक का प्रयोग करते हैं। इस स्पेशल कीटनाशक में भांग, नीम, आक, गोमूत्र, धतूरा, लाल मिर्च, खट्टी लस्सी, फिटकरी मिश्रण शामिल रहता है। इसका घोल तैयार किया जाता है। फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए जैविक कृषि के इस स्पेशल स्प्रे का इस्तेमाल समय-समय पर किया जाता है। ये भी पढ़ें: गाय के गोबर से बन रहे सीमेंट और ईंट, घर बनाकर किसान कर रहा लाखों की कमाई

जैविक उत्पाद का अच्छा बाजार -

जैविक उत्पादों की बिक्री में आसानी होती है, जबकि इसका दाम भी अच्छा मिल जाता है। इस कारण संस्थान में प्रशिक्षित कई किसान जैविक कृषि को आदर्श मान अब अपना चुके हैं। जैविक कृषि आधारित उत्पादों की डिमांड इतनी है कि, लोग घर पर आकर फसल एवं उत्पाद खरीद लेते हैं। इससे उत्पादक कृषक को मंडी व अन्य जगहों पर नहीं जाना पड़ता।

पृथक मंडी की दरकार -

यहां कार्यरत सेवादारों की सलाह है कि जैविक कृषि को सहारा देने के लिए सरकार को जैविक कृषि आधारित उत्पादों के लिए या तो अलग मंडी बनाना चाहिए या फिर मंडी में ही विशिष्ट व्यवस्था के तहत इसके प्रसार के लिए खास प्रबंध किए जाने चाहिए। ये भी पढ़ें: एशिया की सबसे बड़ी कृषि मंडी भारत में बनेगी, कई राज्यों के किसानों को मिलेगा फायदा संस्थान की खास बात यह है कि, प्रशिक्षण व रहने-खाने की सुविधा यहां मुफ्त प्रदान की जाती है। संस्थान की 50 एकड़ भूमि पर सब्जियां जबकि 250 एकड़ जमीन पर अन्य फसलों को उगाया जाता है।

कथा, प्रवचन के साथ आधुनिक मीडिया -

अधिक से अधिक लोगों तक जैविक कृषि की जरूरत, उसके तरीकों एवं लाभ आदि के बारे में उपयोगी जानकारी पहुंचाने के लिए संस्थान धार्मिक समागमों में कथा, प्रवचन के माध्यम से प्रेरित करता है। इसके अलावा आधुनिक संचार माध्यमों खास तौर पर इंटरनेट के प्रचलित सोशल मीडिया जैसे तरीकों से भी जैव कृषि उपयोगिता जानकारी का विस्तार किया जाता है। संस्थान के हितकार खेती प्रकल्प में पैदा ज्यादातर उत्पादों की खपत आश्रम में ही हो जाती है। कुछ उत्पादों के विक्रय के लिए संस्थान में एक पृथक केंद्र स्थापित किया गया है।

गोबर, गोमूत्र आधारित जीव अमृत -

जानकारी के अनुसार संस्थान में लगभग 900 देसी नस्ल की गायों की सेवा की जाती है। इन गायों के गोबर से देसी खाद, जबकि गो-मूत्र से जीव अमृत (जीवामृत) निर्मित किया जाता है। इस मिश्रण में गोमूत्र, गुड़ व गोबर की निर्धारित मात्रा मिलाई जाती है। गौरतलब है कि गोबर के जीवाणु जमीन की उपजाऊ शक्ति बढ़ाने में अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
अब बिहार के किसान घर बैठे पाएं ऑर्गनिक खेती का सर्टिफिकेशन

अब बिहार के किसान घर बैठे पाएं ऑर्गनिक खेती का सर्टिफिकेशन

बिहार में जैविक प्रमाणीकरण यानी ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन (Organic certification) का काम बसोका एजेंसी कर रही है। इसके पीछे कारण यह है, कि यहां पर किसानों को उनकी ऑर्गेनिक खेती के लिए उचित दाम दिलवाने की भरपूर कोशिश की जा रही है। ऑर्गेनिक या जैविक खेती कृषि का प्राचीन तरीका ही है, इसमें बिना किसी केमिकल आदि के प्राकृतिक तरीकों से खेती की जाती है। आजकल लोगों का रुझान इसकी तरफ काफी बढ़ा है, इसमें कम लागत में ज्यादा फसल उगाई जा सकती है और ये आजकल काफी डिमांड में भी है। लोग अपनी हेल्थ पर खास ध्यान दे रहे हैं और ऐसे में ऑर्गेनिक खेती ही उनका पहला विकल्प होता है, साथ ही यह खेती पर्यावरण के लिए भी अच्छी है। क्योंकि इससे वातावरण में किसी भी तरह के जहरीले पदार्थ नहीं छोड़े जाते हैं। किसान अगर ऑर्गेनिक खेती से ज्यादा पैसा कमाना चाहते हैं, तो वो अपनी फसल के लिए जैविक सर्टिफिकेशन बनवा सकते हैं। बिहार सरकार ने इसके लिए आवेदन मांगे हैं और इसकी प्रक्रिया भी आसान होती है।


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अब बिहार में ही प्राप्त करें सर्टिफिकेशन

पहले बिहार के किसानों को यह ऑर्गेनिक सर्टिफिकेट सिक्कम से लेना पड़ता था। लेकिन अब बसोका एजेंसी खुद ही ये सर्टिफिकेट जारी कर रही है, किसान चाहें तो बसोका की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर ऑनलाइन आवेदन भी दे सकते हैं। साथ ही आप ऑफलाइन भी आवेदन दे सकते हैं।

बसोका क्या है?

रिपोर्ट्स की मानें तो केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के संस्थान कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA) की ओर से ही बिहार राज्य बीज और जैविक प्रमाणीकरण एजेंसी (BASOKA) को मूल्यांकन कर राष्ट्रीय मान्यता बोर्ड को ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन (Organic Certification) के लिए मान्यता दी गई है। यह GMO टेस्टिंग करती है और साथ ही ये बीज की क्वालिटी का मूल्यांकन भी करती है। इसके अलावा सिर्फ बिहार ही नहीं, दूसरे राज्य के किसान भी बसोका की वेबसाइट पर आधार संख्या और बाकी की जानकारी देकर आवेदन कर सकते हैं। रिपोर्ट्स की मानें तो पटना के मीठापुर स्थित कृषि निदेशालय परिसर में प्रमाणन एजेंसी का कार्यक्षेत्र बिहार के साथ बंगाल, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, त्रिपुरा, असम और राजस्थान है। इस प्रकार से किसान अपना जैविक सर्टिफिकेशन कुछ आसान स्टेप्स में ले सकते हैं और उन्हें फिर अपनी फसल में दाम को लेकर किसी तरह की टेंशन लेने की जरुरत नहीं है। इसके तहत ऑर्गेनिक खेती का बहुत अच्छा दाम किसानों को दिया जाता है।
इस राज्य के किसान ने जैविक विधि से खेती कर कमाए लाखों अन्य किसानों के लिए भी बने मिशाल

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पंजाब के किसान तरसेम सिंह ने अपने छोटे से खेत में सब्जियों की खेती चालू की थी। आज के समय में उनकी उगाई सब्जियां पंजाब के बड़े शहरों में बिक रही हैं। पंजाब राज्य के जालंधर जनपद के अंतर्गत एक काहलवां गाँव पड़ता है। यहां के एक किसान तरसेम सिंह ने अपनी कड़ी मेहनत से सिद्ध करके दिखाया है, कि सब्जियों एवं बागवानी के जरिए से अपनी किस्मत बदली जा सकती है। ऐसे में हम आपको इस किसान के विषय में बताऐंगे और समझने का प्रयास करेंगे कि कैसे इस आधुनिक युग में कम खेत से सब्जियों की खेती और बागवानी की जा सकती है।

किसान तरसेम पूर्णतय जैविक खेती करते हैं

बतादें, कि किसान तरसेम सिंह विगत कई वर्षों से सब्जियों एवं फलों की सफलतापूर्वक खेती कर रहे हैं। वह प्रति वर्ष अपने खेतों में मौसमी सब्जियों की खेती करते हैं, जिसमें वह मुख्य रूप से पालक, आलू, तोरी, भिंडी, साग और धनिया आदि शम्मिलित है। तरसेम सिंह अपनी सब्जी की खेती में किसी भी प्रकार के कीटनाशक का इस्तेमाल नहीं करते हैं। वह सिर्फ स्थानीय खाद और किसानों से मिले खाद का इस्तेमाल करते हैं। वह खेती किसानी का समस्त कार्य खुद से ही करते हैं, जिससे उनका खेती की लागत भी कम हो जाती है। ये भी पढ़े: जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए इतने रुपये का अनुदान दे रही है ये राज्य सरकार किसान तरसेम सिंह सब्जी की खेती के अतिरिक्त बागवानी भी करते हैं। उन्होंने अपने खेतों में आलू-बुखारा, नींबू, आम और लीची के वृक्ष रोपे हैं, जिनसे उन्हें प्रति वर्ष मौसमी फल मिलते हैं। ये फल उनकी आमदनी को और ज्यादा बढ़ा देते हैं।

बागवानी किसान तरसेम ने अपनी सब्जियों व फलों को बेचने को लेकर क्या कहा है

तरसेम का कहना है, कि वह कादी शहर में अपनी सब्जियों और फलों को स्वयं बेचते हैं। उनका कहना है, कि आज कल की खेती पूर्णतय रासायनिक उर्वरकों पर आश्रित हो गई है। लोग इससे बचने के उपाय भी खोज रहे हैं। ऐसे में उनकी सब्जियां जैविक ढ़ंग से पैदा की गई हैं, जिसे लोग ज्यादा भाव भी देकर खरीद रहे हैं। तरसेम सिंह किसान प्रशिक्षण शिविरों, किसान मेलों और अन्य कार्यक्रमों के दौरान भी अपनी उपज को अच्छी कीमतों पर बेचते हैं। किसान तरसेम सिंह ने लघु कृषकों को कहा है, कि सब्जी एवं फल का उत्पादन उनके लिए एक बेहतर विकल्प है। छोटे किसानों को कम जमीन से ज्यादा आय अर्जित करने के लिए सब्जी और बागवानी को अवश्य अपनाना चाहिए।